7 में से 1 भारतीय मानसिक रोगी, खासकर, दक्षिण भारतीय लोग ज्याद हो रहें डिप्रेशन के शिकार

7 में से 1 भारतीय मानसिक रोगी, खासकर, दक्षिण भारतीय लोग ज्याद हो रहें डिप्रेशन के शिकार

नरजिस हुसैन

दक्षिण भारत में तेजी से बढ़ रही है मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियां। इन राज्यों में किशोरावस्था में ही दिखाई दे रहे हैं मानसिक रोगों के लक्षण। आत्महत्या के मामले भी दक्षिण में उत्तर भारत से ज्यादा है। इसी हफ्ते आई लैंसेट साइकियाट्रिक में छपी India State-Level Disease Burden Initiative  (https://www.thelancet.com/journals/lanpsy/article/PIIS2215-0366(19)30475-4/fulltext)  इस रिपोर्ट में भारत में 1990-2017 के बीच देश के अलग-अलग राज्यों के मानसिक स्वास्थ्य का जायजा लिया गया है। एक दशक से भी ज्यादा के समय के रिकार्ड लिए मानसिक स्वास्थ्य पर पहली बार इतनी विस्तार और गहन रिपोर्ट देश के नीति बनाने वालों और संबंधित क्षेत्र में काम करने वालों के सामने आई है।

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ये बात वाकई चौंकाने वाली है कि देश में 2017 में हर सात में से एक आदमी किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। यानी करीब 19.7 करोड़ लोग मानसिक बीमारियों की चपेट में हैं। इन बीमारियों में डिप्रेशन, एनजाइटी, बाइपोलर, सिजोफ्रेनिया, ऑटिज्म, कंडक्ट डिसाडर और इन्टिलेक्च्अल डिजएबिलिटी खास हैं। कुल 4.57 करोड़ लोगों को डिप्रेशन से जुड़ी अलग-अलग बीमारियां हैं। हालात ये है कि 4.49 करोड़ लोग देश में हमेशा चिंता यानी एनजाइटी में जीते है जो इंसान की जिन्दगी के कुछ साल वैसे ही कम कर देती है। रिपोर्ट ने इस बात की भी जानकारी दी कि 1990-2017 के लंबे समय में लोगों विकलांगता को 2.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.7 फीसद तक पहुंचा दिया है।

रिपोर्ट में सबसे ज्यादा हैरान करने वाली जो थी वह यह कि तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्रा प्रदेश जैसे विकसित राज्यों में मानसिक रोगों का प्रसार तेजी से हो रहा है। इन सभी राज्यों में मानसिक रोगों की शुरू तकरीबन किशोरावस्था में शुरू होती जा रही है। ये रिपोर्ट सामाजिक-क्षेत्रीय आधार पर तीन खास कारकों को देखकर बनाई गई है- कम, मध्यम और उच्च। यानी प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा और 25 साल से कम उम्र की लड़कियों में प्रजनन दर के हिसाब से इन मानसिक रोगों को राज्यों में बांटा गया है।

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तमिलनाडु में डिप्रेशन का प्रसार उत्तर भारतीय राज्यों बल्कि दक्षिण भारत से भी सबसे ज्यादा है। इसके बाद केरल फिर गोवा, तेलंगाना और आंध्रा प्रदेश हैं। इसी तरह एंजाइटी में सबसे आगे केरल, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र है। आंध्रा प्रदेश, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में एंजाइटी मध्यम स्तर पर पाई गई।

ये भी एक चौंकाने वाला तथ्य है कि डिप्रेशन सबसे ज्यादा अधेड़ उम्र के लोगों में पाया गया। इसे अगर वक्त रहते रोका न गया तो बहुत जल्द ही भारत डिप्रेस्ड बुजुर्गों का देश बन जाएगा। इसकी वजह यह है कि अकेली डिप्रेशन ही एक अवस्था है जो सबसे ज्यादा यानी 33.8 प्रतिशत अन्य मानसिक रोगों को जन्म देती है। हालांकि, एंजाइटी 19.0 प्रतिशत इन रोगों को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है। लिंग के हिसाब से अगर देखा जाए तो डिप्रेशन की सबसे ज्यादा शिकार औरतें हैं। जहां 3.99 प्रतिशत औरतें इससे परेशान हैं वहीं 2.7 फीसद पुरुष डिप्रेस्ड होते हैं। इटिंग डिस्आर्डर में भी महिलाएं सबसे आगे हैं 0.3 प्रतिशत जबकि 0.1 फीसद आदमी ही इसके शिकार होते हैं। हालांकि, ऑटिज्म, Attention-Deficit Hyperactivity Disorder (ADHD) और कंडक्ट डिस्आर्डर रोगों खासकर पुरूषों में ज्यादा पाया गया।

ये बात अब किसी से छिपी नहीं है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी रोग लोगों में तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। आबादी के हिसाब से डॉक्टरों की संख्या भी कम है। करीब 90 फीसद मरीज रोगों से संबंधित चिकित्सा सुविधा ले ही नहीं पाते। या तो मरीज और परिवार वाले रोगों के लक्षण खुद ही नहीं समझ पाते और या फिर उनके आस-पास मानसिक सुविधाएं मौजूद नहीं होती। इसके साथ ही इन अवस्थाओं और इन जुड़े रोगों के बारे में बात करने में परिवार और समाज डरता है, डर हिकारत का कि कहीं लोग बात करना न बंद कर दें, घर आना-जाना न बंद कर दें वगैरह वगैरह।

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आज हम सबको समझना होगा कि हमें इस बारे में खुलकर बात करनी शुरू करनी होगा ताकि इस समस्या को आगे बढ़ने से वक्त रहते रोका जा सके। सरकार के साथ  मदद करते हुए लोगों और समाज को जागरुक करना जरूरी है। बल्कि जिस तेजी से ये बीमारियां किशोरों पर हावी होती जा रही है तो जरूरत इस बात की भी है कि इसकी पढ़ाई पाठ्यक्रम में शामिल कर कम उम्र से बच्चों और किशोरों को जानकार बनाएं। जानकारी और जागरुकता ही इसे रोकने में कारगर साबित होंगे।

 

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